
रायगढ़*
माननीय मीडिया बंधुओं,
क्या “मोदी की गारंटी” सिर्फ कागजी वादों का पुलिंदा है? क्या रायगढ़ के 518 संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की मेहनत और समर्पण का कोई मूल्य नहीं? क्या स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ कहे जाने वाले इन कर्मचारियों की आवाज को कुचलना ही शासन का एकमात्र लक्ष्य है?
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के 518 संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों ने आज सामूहिक त्यागपत्र देकर शासन की अनदेखी और दमनकारी नीतियों के खिलाफ अपना रोष जाहिर किया है। विगत 18 अगस्त से हम अपनी 10 सूत्री मांगों को लेकर लोकतांत्रिक ढंग से, संविधान प्रदत्त अधिकारों के दायरे में आंदोलनरत हैं। 160 से अधिक बार ज्ञापन देने के बावजूद शासन की चुप्पी ने हमें यह कठोर कदम उठाने को मजबूर किया है।
आश्चर्य की बात है कि प्रशासन व्हाट्सएप पर चेतावनी पत्र और बर्खास्तगी के आदेश भेजने में जितनी तत्परता दिखाता है, उतनी तत्परता हमारी जायज मांगों के समाधान में क्यों नहीं? सुबह हमारे प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अमित मिरी माननीय मुख्यमंत्री जी से हस्तक्षेप की गुहार लगाते हैं, और शाम होते-होते प्रशासन बर्खास्तगी के फरमान जारी कर देता है। यह कैसा संवाद है? क्या प्रशासन का मकसद कर्मचारियों और सरकार के बीच संवाद की हर संभावना को खत्म करना है?
रायगढ़ में 518 कर्मचारियों का सामूहिक त्यागपत्र कोई आवेश में लिया गया निर्णय नहीं, बल्कि प्रशासन की दमनकारी नीतियों और “मोदी की गारंटी” के खोखले वादों का परिणाम है। हम पूछते हैं—क्या शासन चाहता है कि स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो जाएं? क्या रायगढ़ के मरीजों को इलाज के लिए भटकना ही नियति है? अगर व्हाट्सएप पर बर्खास्तगी के आदेश इतनी तेजी से भेजे जा सकते हैं, तो क्या हमारी मांगों के निराकरण में भी ऐसी ही तेजी नहीं दिखाई जा सकती?
हमारी मांगें साफ हैं—नियमितीकरण, स्थाईकरण, पब्लिक हेल्थ कैडर, ग्रेड पे, और अनुकंपा नियुक्ति जैसी जायज मांगें। लेकिन शासन का रवैया दमनकारी है, संवादहीन है। हम, रायगढ़ के 518 और पूरे छत्तीसगढ़ के 16,000 एनएचएम संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी, इस तानाशाही के खिलाफ एकजुट हैं। हम चेतावनी देते हैं कि यदि हमारी मांगों पर तत्काल विचार नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और तेज होगा।

